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Daru haldi benefits in hindi |दारुहरिद्रा ( दारू हल्दी )के फायदे और उपयोग

Daru haldi benefits in hindi |दारुहरिद्रा ( दारू हल्दी )के फायदे और उपयोग

Daru haldi benefits in hindi

दारू हल्दी, जिसे वैज्ञानिक नाम ‘बरबरिस अरिस्टाटा’ से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि है। इसे ‘दारुहरिद्रा’ या ‘दारु हल्दी’ के नाम से भी जाना जाता है। यह एक झाड़ीदार पौधा है जो हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। इसका उपयोग सदियों से विभिन्न रोगों के उपचार में किया जा रहा है।

दारुहरिद्रा का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्राचीन काल से होता आ रहा है। इसकी जड़, छाल, पत्तियां और फल सभी औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। विशेषकर इसकी जड़ की छाल से बनने वाले काढ़ा और रसौत का उपयोग अनेक रोगों के इलाज में किया जाता है।


दारू हल्दी ( दारुहरिद्रा ) क्या है |

दारू हल्दी, जिसे दारुहरिद्रा भी कहा जाता है, एक प्राचीन औषधि है जो आयुर्वेदिक चिकित्सा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह एक औषधीय पौधा है जिसकी जड़ें और रेशे कई चिकित्सीय गुणों से भरपूर होते हैं। दारू हल्दी का वैज्ञानिक नाम “Berberis aristata” है और यह भारतीय सबकों में पाया जाता है। इसकी पत्तियों का रंग हरा होता है और इसकी छाल का रंग भूरा होता है।

दारू हल्दी का उपयोग विभिन्न रोगों के इलाज में किया जाता है, जैसे कि आमाशय संबंधी समस्याएँ, खांसी, बुखार, बवासीर, एनीमिया, मूत्र रोग, और त्वचा संबंधी समस्याएँ। इसके अलावा, दारू हल्दी को प्राकृतिक एंटीबायोटिक, एंटीफंगल, और एंटीवायरल गुणों से भी जाना जाता है जो विभिन्न प्रकार के संक्रमणों के इलाज में मददगार होते हैं।

इसके रूप में, दारू हल्दी एक प्राकृतिक औषधि है जो आयुर्वेदिक चिकित्सा के साथ ही स्वास्थ्य और विश्वासनीयता में अहम भूमिका निभाती है।


अनेक भाषाओं में दारुहरिद्रा के नाम (Name of Daruharidra in Different Languages)

Hindi दारुहलदी, दारुहरदी; उत्तराखण्ड-किंगोरा (Kingora)
English इण्डियन बर्बेरी (Indian barberry), ट्री टरमेरिक (Tree turmeric), नेपाल बर्बेरी (Nepal barberry)  
Sanskrit दार्वी, दारुहरिद्रा, पर्जन्या, पर्जनी, पीता, पीतद्रु, पीतद, पीतदारु, पीतक, हरिद्रव
Tamil  मर मंजिल (Mar manjal), उसिक्कला (Usikkala)
Telugu मानिपुसपु (Manipusupu), दारूहरिद्रा (Daruharidra), कस्थूरी पुष्पा (Kasthoori pushpa)
Kannada दोद्दामरदरिसिन (Doddamaradrisin), बगीसूट्रा (Bagisutra)
Marathi दारुहल्दी (Daruhaldi), जरकि हलद (Jarki halad)
Malayalam मरदारिसिना (Maradarisina), मरमांजल (Maramanjal)
Gujarati दारुहलदर (Daruhaldar)
Bengali दारुहरिद्रा (Daruharidra)
Punjabi सुमलु (Sumalu), सीमलु (Simalu)
Nepali चित्रा (Chitra), केस्से (Kissie)

दारू हल्दी (दारुहरिद्रा) के फायदे | Daru haldi benefits in hindi


1. बुखार में दारू हल्दी के फायदे

दारुहल्दी में प्राकृतिक एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो शरीर में संक्रमण को कम करने और बुखार को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है और शरीर में तापमान को संतुलित करता है। इसके अलावा, दारुहल्दी का काढ़ा पीने से शरीर को डिटॉक्सिफाई करने में मदद मिलती है, जिससे संक्रमण के कारण होने वाले विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं।

इसकी जड़ की छाल से काढ़ा बनाने का पारंपरिक तरीका बुखार से राहत पाने के लिए उपयोग किया जाता है। दारुहल्दी की जड़ की छाल से काढ़ा बनाने के लिए, लगभग 10-20 ग्राम छाल को 200 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब तक कि पानी आधा न रह जाए। इस काढ़ा को छानकर ठंडा होने दें और दिन में दो बार सेवन करें।


घाव सुखाने के लिए करें दारू हल्दी का इस्तेमाल

2. घाव सुखाने के लिए करें दारू हल्दी का इस्तेमाल

दारू हल्दी, प्राकृतिक एंटीसेप्टिक और एंटीबैक्टीरियल गुण घाव को तेजी से ठीक करने में मदद करते हैं। दारुहल्दी की जड़ की छाल का उपयोग घावों को सुखाने और संक्रमण से बचाने के लिए किया जाता है।

घावों के उपचार के लिए दारुहल्दी का लेप बनाने के लिए, पहले इसकी जड़ की छाल को पीसकर पाउडर बना लें। इस पाउडर को पानी या नारियल तेल में मिलाकर एक गाढ़ा पेस्ट तैयार करें। इस पेस्ट को सीधे घाव पर लगाएं। दारुहल्दी के पेस्ट में मौजूद प्राकृतिक गुण घाव को संक्रमण से बचाते हैं और सूजन को कम करते हैं। यह घाव के आसपास की त्वचा को भी स्वस्थ बनाता है और घाव को जल्दी सूखने में मदद करता है।

दारुहल्दी का पेस्ट लगाने से घाव पर एक सुरक्षात्मक परत बनती है जो बैक्टीरिया और अन्य रोगाणुओं को घाव में प्रवेश करने से रोकती है। इसके नियमित उपयोग से घाव तेजी से ठीक होते हैं और घाव के निशान भी कम हो जाते हैं। इसके अलावा, दारुहल्दी का उपयोग त्वचा की जलन, खुजली और रैशेज़ को भी कम करता है।

घावों के उपचार के लिए दारुहल्दी का उपयोग एक सुरक्षित और प्राकृतिक तरीका है। यह घरेलू उपचार न केवल घाव को जल्दी ठीक करता है, बल्कि त्वचा को भी पोषण देता है। इसलिए, छोटी-मोटी चोटों और घावों के लिए दारुहल्दी का इस्तेमाल अवश्य करें।


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3. दारू हल्दी के प्रयोग से आंखों के रोग का इलाज

दारू हल्दी, जिसे ‘दारुहरिद्रा‘ भी कहा जाता है, आंखों के विभिन्न रोगों के उपचार में अत्यंत प्रभावी है। इसमें मौजूद एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीसेप्टिक गुण आंखों की जलन, सूजन, और संक्रमण को कम करने में मदद करते हैं।

आंखों के रोगों के उपचार के लिए दारुहल्दी का प्रयोग करने का एक प्रमुख तरीका है ‘अञ्जन’। इसके लिए मधु (शहद) और रसौत (दारुहल्दी की जड़ से बना रस) का मिश्रण तैयार करें। इस मिश्रण को आंखों में लगाने से आंखों की लालिमा, जलन और सूजन में राहत मिलती है। मधु और रसौत का संयोजन आंखों की सफाई करता है और संक्रमण को दूर करता है।

इसके अलावा, दारुहल्दी का काढ़ा भी आंखों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। दारुहल्दी की जड़ की छाल को पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं। इस काढ़ा को ठंडा करके दिन में दो बार सेवन करें। यह आंखों के आंतरिक स्वास्थ्य को सुधारता है और दृष्टि को बेहतर बनाता है।

दारुहल्दी के एंटीऑक्सीडेंट गुण आंखों की कोशिकाओं को नुकसान से बचाते हैं और आंखों के सामान्य संक्रमणों से लड़ने में मदद करते हैं। यह आंखों की थकान को भी कम करता है और आंखों को ताजगी प्रदान करता है।

आंखों के रोगों के उपचार में दारुहल्दी का उपयोग एक प्राकृतिक और सुरक्षित तरीका है। इसके नियमित उपयोग से आंखों की कई समस्याओं से बचा जा सकता है और आंखों का स्वास्थ्य बेहतर होता है। इसलिए, आंखों की देखभाल के लिए दारुहल्दी का प्रयोग अवश्य करें।


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4. खूनी बवासीर के इलाज के लिए करें दारू हल्दी का प्रयोग

खूनी बवासीर, जिसे ‘रक्तार्श’ भी कहा जाता है, एक दर्दनाक और असहज स्थिति है जिसमें मलत्याग के दौरान रक्तस्राव होता है। इस समस्या के समाधान के लिए दारू हल्दी (दारुहरिद्रा) एक प्रभावी आयुर्वेदिक औषधि है। दारुहल्दी के प्राकृतिक एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीसेप्टिक गुण इसे खूनी बवासीर के इलाज के लिए उपयोगी बनाते हैं।

खूनी बवासीर के उपचार के लिए दारुहल्दी का प्रयोग निम्नलिखित तरीके से किया जा सकता है:

  1. रसौत का उपयोग: रसौत दारुहल्दी की जड़ से तैयार किया जाता है। इसे बनाने के लिए, दारुहल्दी की जड़ की छाल को पानी में उबालें और फिर छान लें। इस काढ़ा को रात भर रखकर ठंडा होने दें। सुबह इसे फिर से उबालें और जब यह एक चौथाई रह जाए, तो इसे ठंडा कर लें। इस रसौत को दिन में दो बार, 250 मिग्रा की मात्रा में सेवन करें।
  2. नीम के पत्तों का मिश्रण: रसौत को रात भर पानी में भिगोएं। इसे छानकर गाढ़ा बना लें। जब यह एक चौथाई बच जाए तो इसमें छाया में सुखाए हुए नीम के पत्तों का बारीक चूर्ण मिलाएं। इस मिश्रण को छोटी गोलियों के रूप में तैयार करें और नियमित रूप से सेवन करें। इससे बवासीर और खूनी बवासीर में राहत मिलती है।

दारुहल्दी का यह उपचार बवासीर के कारण होने वाले दर्द और सूजन को कम करता है। इसके अलावा, यह रक्तस्राव को नियंत्रित करता है और मलत्याग को आसान बनाता है। इसके नियमित उपयोग से बवासीर की समस्या में काफी हद तक सुधार देखा जा सकता है। दारुहल्दी का यह प्राकृतिक और आयुर्वेदिक तरीका बवासीर के इलाज के लिए सुरक्षित और प्रभावी है।


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5. कुष्ठ रोग के उपचार के लिए दारू हल्दी

दारू हल्दी, जिसे ‘दारुहरिद्रा’ भी कहा जाता है, कुष्ठ रोग (लेप्रसी) के उपचार में अत्यंत प्रभावी है। इसमें मौजूद एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी, और एंटीऑक्सीडेंट गुण कुष्ठ रोग के लक्षणों को कम करने में मदद करते हैं।

कुष्ठ रोग के उपचार के लिए दारुहल्दी का उपयोग विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है:

  1. रसौत का उपयोग: रसौत दारुहल्दी की जड़ से तैयार किया जाता है। इसे बनाने के लिए, दारुहल्दी की जड़ और निचले तने को सोलह गुना पानी में पकाएं। जब यह एक चौथाई रह जाए, तो इसमें बराबर मात्रा में बकरी या गाय का दूध मिलाकर कम आंच में गाढ़ा करें। इस रसौत को तेल या घी में पकाकर प्रभावित क्षेत्रों पर लगाएं। यह त्वचा के घावों को ठीक करता है और संक्रमण को कम करता है।
  2. गोमूत्र के साथ सेवन: 10-12 ग्राम रसौत को एक महीने तक 15-20 मिली गोमूत्र में घोलकर पिएं। इसके साथ ही इसे शरीर पर लेप करने से कुष्ठ रोग में शीघ्र लाभ होता है। यह उपचार शरीर के अंदर से संक्रमण को कम करता है और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
  3. स्नान के रूप में उपयोग: दारुहल्दी के काढ़ा को स्नान के पानी में मिलाकर नहाएं। यह त्वचा के संक्रमण को कम करता है और त्वचा की स्वच्छता को बनाए रखता है।

दारुहल्दी का यह उपचार कुष्ठ रोग के विभिन्न लक्षणों को कम करने में मदद करता है। यह त्वचा के घावों को ठीक करता है, सूजन को कम करता है, और संक्रमण को रोकता है। दारुहल्दी का यह आयुर्वेदिक और प्राकृतिक उपचार कुष्ठ रोग के इलाज के लिए सुरक्षित और प्रभावी है। इसके नियमित उपयोग से कुष्ठ रोग में काफी हद तक सुधार देखा जा सकता है।


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मोटापा कम करने के लिए दारू हल्दी का इस्तेमाल

6. मोटापा कम करने के लिए दारू हल्दी का इस्तेमाल

मोटापा आजकल एक गंभीर समस्या बन गया है जो लाइफस्टाइल और खाने की आदतों के बदलाव के कारण होता है। दारू हल्दी (दारुहरिद्रा) मोटापा को कम करने में मदद कर सकती है और स्वस्थ वजन प्राप्त करने में सहायक हो सकती है।

दारू हल्दी का उपयोग करते समय ध्यान देने योग्य बातें शामिल हैं:

  1. रसांजन का उपयोग: दारू हल्दी का रसांजन स्थानीय इम्बोलिजेशन (local immobilization) को बढ़ावा देता है, जिससे वसा और मस्सों के ऊतकों के मेटाबोलिज्म को तेजी से बढ़ावा मिलता है। यह मोटापा को कम करने में मदद कर सकता है।
  2. दारू हल्दी का काढ़ा: दारू हल्दी की जड़ की छाल को पानी में उबालकर एक काढ़ा तैयार करें। इसे नियमित रूप से पीने से पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है और वजन कम करने में सहायक होती है।
  3. दारू हल्दी के उपयोग की अन्य विधियाँ: दारू हल्दी के रसांजन को तेल में मिलाकर शरीर पर मालिश करना, या फिर इसका सेवन सुबह की धूप में करना भी मोटापा को कम करने में मदद कर सकता है।

इन तकनीकों का नियमित अनुसरण करते हुए, साथ ही स्वस्थ आहार और व्यायाम के साथ मिलाकर, दारू हल्दी का उपयोग मोटापा को कम करने में सहायक हो सकता है।


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7. मूत्र रोग में लाभ पहुंचाता है दारू हल्दी

मूत्र रोग एक ऐसी समस्या है जिसमें मूत्र तंत्र कारगर रूप से काम नहीं करता है और शरीर में मूत्र संचय हो जाता है। इसमें व्यक्ति को पेशाब करने में समस्या होती है और यह अन्य कई समस्याओं का कारण बन सकता है। दारू हल्दी (दारुहरिद्रा) मूत्र रोग के इलाज में लाभदायक हो सकती है।

दारू हल्दी में मौजूद औषधीय गुण रक्तशोधक, प्राथमिक निर्जनक, और शांति देने वाले गुण होते हैं जो मूत्र रोग को ठीक करने में सहायक हो सकते हैं।

दारू हल्दी का सेवन करने से मूत्र रोग के लक्षणों में सुधार आ सकता है। यह शरीर के विषैले पदार्थों को निकालने में मदद करता है और मूत्र संचय को कम करता है।

दारू हल्दी का उपयोग करने के लिए, दारुहल्दी का चूर्ण या रस को मधु के साथ सेवन किया जा सकता है। यह रक्तशोधक गुणों के कारण मूत्र रोग में लाभ प्रदान कर सकता है।

ध्यान दें कि यह सलाह किसी विशेष मेडिकल कंडीशन के लिए नहीं है, और इससे पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।


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8. एनीमिया में लाभ पहुंचाता है दारू हल्दी

एनीमिया एक सामान्य स्थिति है जो रक्त में हेमोग्लोबिन की कमी के कारण होती है, जिससे शरीर को आवश्यक ऑक्सीजन प्राप्ति में समस्या होती है। दारू हल्दी (दारुहरिद्रा) एनीमिया के इलाज में आयुर्वेदिक रूप से उपयोगी हो सकती है।

दारू हल्दी में मौजूद विभिन्न तत्व रक्त बढ़ाने और हेमोग्लोबिन स्तर को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। इसमें प्राकृतिक आयुर्वेदिक औषधीय गुण होते हैं जो रक्त के साथ ऑक्सीजन के प्रबंधन को सुधार सकते हैं और एनीमिया के लक्षणों को कम कर सकते हैं।

दारू हल्दी का सेवन करने से हेमोग्लोबिन स्तर बढ़ सकता है जो रक्त के अधिक उत्पादन और उसकी सामान्य फ़ंक्शनिंग के लिए आवश्यक होता है। इसके अलावा, दारू हल्दी में मौजूद रक्तशोधक गुण रक्त को साफ़ करके और रक्त की संरचना को सुधारकर एनीमिया को ठीक करने में मदद कर सकते हैं।

दारू हल्दी का उपयोग करने से पहले, एक डॉक्टर से परामर्श करना महत्वपूर्ण है, खासकर यदि आपको गंभीर एनीमिया की समस्या है। इसके अलावा, सही खान-पान, पूर्ण नींद, और नियमित व्यायाम का भी ध्यान रखना चाहिए।


रसौत बनाने की प्रक्रिया

दारुहरिद्रा की जड़ और निचले तने भाग को सोलह गुना जल में पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में, एक बड़े पतीले में पानी डाला जाता है और उसमें दारुहरिद्रा की जड़ और निचले तने डाले जाते हैं। इसे धीरे-धीरे उबालने दिया जाता है ताकि उनके गुण समाप्त हों और पानी उनकी गुणवत्ता को सोख सके। यह प्रक्रिया उस अवस्था तक चलाई जाती है जब जल का एक चौथाई हिस्सा शेष रह जाता है।

इसके बाद, जब यह जल एक चौथाई हिस्सा शेष रह जाता है, तो उसमें बराबर मात्रा में बकरी या गाय का दूध मिलाया जाता है। यह दूध काढ़े को गाढ़ा बनाता है और उसे रसाञ्जन या रसौत कहा जाता है।

अंत में, इस रसाञ्जन को धूप में सुखा दिया जाता है ताकि इसका उपयोग बाद में किया जा सके। इस प्रक्रिया के माध्यम से दारुहरिद्रा के औषधीय गुणों को समाहित किया जाता है और इसे उपयोग के लिए तैयार किया जाता है।


दारू हल्दी का काढ़ा कैसे बनाये

दारू हल्दी का काढ़ा बनाने के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:

सामग्री:

  1. दारू हल्दी (उपलब्ध होने पर)
  2. अदरक (एक छोटा टुकड़ा)
  3. तुलसी के पत्ते (चार-पाँच पत्ते)
  4. गुड़ या शहद (स्वाद के अनुसार)
  5. नींबू का रस (एक छोटा चमच)
  6. पानी (2 कप)

इसे बनाने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:

  1. एक पैन में पानी गरम करें।
  2. गरम पानी में दारू हल्दी, अदरक टुकड़ा, और तुलसी के पत्ते डालें।
  3. इसे धीरे से उबालें। इसके बाद, उबालने के लिए उसे कम आंच पर रखें।
  4. जब पानी का मात्रा आधा हो जाए, तो इसे ठंडा होने दें।
  5. अब इसमें गुड़ या शहद और नींबू का रस मिलाएं।
  6. इसे आप गरमा गरम पी सकते हैं।

यह काढ़ा आपको ठंडक देगा, साथ ही दारू हल्दी के स्वास्थ्य लाभों का भी आनंद लेने में मदद करेगा। ध्यान दें कि यदि आपको किसी भी तरह की एलर्जी या अन्य स्वास्थ्य समस्या हो, तो पहले डॉक्टर से सलाह लें।


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