छड़ीला, जिसे पत्थर का फूल, दगड़ फूल, कालपासी, या स्टोन फ्लावर के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रकार का लाइकेन (कवक और शैवाल का सहजीवी संघ) है। यह प्राकृतिक रूप से पेड़ों, चट्टानों और दीवारों पर उगता है। आयुर्वेद में इसका विशेष महत्व है चलिए जानते है पत्थर का फूल, छड़ीला के फायदे और उपयोग
छड़ीला क्या है
छड़ीला का वानस्पतिक नाम Parmelia perlata है, और यह Parmeliaceae कुल का सदस्य है। यह भारत के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और नीलगिरी की पहाड़ियों में पाया जाता है। इसकी बनावट खुरदरी और रंग में धूसर या काले रंग की होती है, जो इसे अन्य पौधों से अलग पहचान देती है।
छड़ीला के 7 प्रमुख फायदे और उपयोग:
- बालों की समस्याओं में लाभकारी: छड़ीला का उपयोग बालों की समय से पहले सफेदी को रोकने में सहायक होता है। इसे कर्चूर, हल्दी, काली तुलसी, तगर और गुड़ के साथ मिलाकर सिर पर लेप करने से बालों का पकना कम होता है।
- सिरदर्द में राहत: छड़ीला को पीसकर मस्तक पर लगाने से सिरदर्द में आराम मिलता है।
- आंखों के रोगों में उपयोगी: हरीतकी, बहेड़ा, आँवला, सोंठ, मरिच, पिप्पली, समुद्रफेन, छड़ीला और राल को मिलाकर बनाई गई बत्ती को जल में घिसकर आंखों में लगाने से कफज विकार के कारण होने वाली आंखों की बीमारियों में लाभ होता है।
- मूत्र विकारों में सहायक: छड़ीला का काढ़ा बनाकर उसमें जीरा चूर्ण और मिश्री मिलाकर सेवन करने से रुक-रुक कर पेशाब आने की समस्या में राहत मिलती है।
- विसर्प (एरिसिपेलस) रोग में फायदेमंद: सज्जीक्षार, नीलाथोथा, कासीस, छड़ीला, रसाञ्जन और मैनसिल का चूर्ण बनाकर त्वचा पर लगाने से विसर्प रोग में लाभ होता है।
- घाव भरने में मददगार: छड़ीला के चूर्ण को घाव पर लगाने से घाव जल्दी ठीक होता है।
- खुजली और त्वचा रोगों में उपयोगी: छड़ीला को पीसकर खुजली वाले स्थान पर लगाने से राहत मिलती है।
छड़ीला के नाम विभिन्न भाषाओं में (Names of Chadila in Different Languages)
छड़ीला एक औषधीय पौधा है जिसे भारत और आसपास के कई देशों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। इसके औषधीय गुणों के कारण इसे आयुर्वेद में विशेष महत्व दिया गया है। आइए जानते हैं छड़ीला को विभिन्न भाषाओं में किन-किन नामों से जाना जाता है:
- संस्कृत (Sanskrit): छड़ीला, दारुभेद, नागदन्ती
- हिंदी (Hindi): छड़ीला, चडिला
- मराठी (Marathi): नागदंती
- गुजराती (Gujarati): नागदंती
- तमिल (Tamil): नागदंडी
- तेलुगू (Telugu): नागदंती
- कन्नड़ (Kannada): नागदंती
- मलयालम (Malayalam): नागदंती
- बंगाली (Bengali): नागदंती
- उड़िया (Odia): नागदंती
- पंजाबी (Punjabi): नागदंती
- अंग्रेजी (English): Indian Rhubarb
- उर्दू (Urdu): چھڑیلا
छड़ीला के विभिन्न नाम उसके क्षेत्रीय महत्व और भौगोलिक स्थान के अनुसार बदलते हैं। हालांकि, इसके औषधीय गुण सभी स्थानों पर समान रूप से प्रसिद्ध हैं।
छड़ीला के फायदे और उपयोग | Chadila Stone Flower Benefits in hindi
छड़ीला के 7 प्रमुख फायदे और उपयोग:
1. बालों की समस्याओं में लाभकारी:
छड़ीला बालों के स्वास्थ्य को बनाए रखने में बहुत सहायक होता है। इसके नियमित उपयोग से समय से पहले सफेद बालों की समस्या में राहत मिलती है। आयुर्वेद में इसे विशेष रूप से बालों के लिए उपयोगी माना गया है। छड़ीला में मौजूद प्राकृतिक तत्व बालों को जड़ से मजबूत बनाते हैं और उनकी चमक को बरकरार रखते हैं।
उपयोग विधि:
- छड़ीला, कर्चूर, हल्दी, काली तुलसी, तगर और गुड़ को समान मात्रा में लेकर पेस्ट बनाएं।
- इस पेस्ट को बालों की जड़ों में अच्छे से लगाकर 30-40 मिनट के लिए छोड़ दें।
- इसके बाद गुनगुने पानी से बालों को धो लें।
- इस नुस्खे का उपयोग हफ्ते में 2-3 बार करने से सफेद बालों की समस्या में सुधार होता है।
छड़ीला का यह लेप न केवल बालों की सफेदी को कम करता है, बल्कि बालों को पोषण देकर उन्हें स्वस्थ और चमकदार भी बनाता है।
2. सिरदर्द में राहत:
छड़ीला का उपयोग सिरदर्द जैसी समस्याओं में भी अत्यंत लाभकारी माना गया है। इसके शीतल और तासीर में ठंडे गुण सिरदर्द को शांत करने में मदद करते हैं। खासकर माइग्रेन और तनावजनित सिरदर्द में इसका उपयोग विशेष रूप से प्रभावी होता है। आयुर्वेद में इसे एक प्राकृतिक दर्द निवारक के रूप में देखा जाता है। छड़ीला में मौजूद औषधीय गुण मस्तिष्क के रक्त संचार को सुचारू करते हैं और नसों को आराम प्रदान करते हैं।
उपयोग विधि:
- छड़ीला को बारीक पीसकर पेस्ट तैयार करें।
- इस पेस्ट को मस्तक पर लगाकर हल्के हाथों से मालिश करें।
- लगभग 20-30 मिनट तक पेस्ट को लगे रहने दें।
- इसके बाद ठंडे पानी से धो लें।
यह उपाय सिर में गर्मी के कारण होने वाले दर्द को भी कम करता है और मस्तिष्क को ठंडक प्रदान करता है। यदि नियमित रूप से इसका उपयोग किया जाए, तो सिरदर्द की आवृत्ति और तीव्रता में कमी आ सकती है।
इसके अलावा, छड़ीला का लेप तनाव और चिंता को भी कम करता है, जिससे मस्तिष्क को शांति मिलती है।
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3. आंखों के रोगों में उपयोगी:
छड़ीला का उपयोग आंखों से जुड़ी कई समस्याओं के उपचार में किया जाता है। इसमें मौजूद प्राकृतिक गुण आंखों की जलन, लाली, खुजली और कफज विकार से संबंधित रोगों में राहत प्रदान करते हैं। आयुर्वेद में इसे विशेष रूप से आंखों की देखभाल के लिए उपयोगी माना गया है। छड़ीला के शीतल और शुद्धिकरण गुण आंखों की ठंडक को बनाए रखते हैं और संक्रमण से बचाव करते हैं।
उपयोग विधि:
- छड़ीला के साथ हरीतकी, बहेड़ा, आँवला, सोंठ, मरिच, पिप्पली, समुद्रफेन और राल को समान मात्रा में मिलाकर चूर्ण तैयार करें।
- इस चूर्ण को छोटी-छोटी बत्तियों का आकार देकर सुखा लें।
- जब उपयोग करना हो, तो इस बत्ती को जल में घिसकर काजल की तरह आंखों में लगाएं।
- यह कफज विकारों के कारण उत्पन्न आंखों की लालिमा और जलन को कम करने में सहायक होता है।
छड़ीला का यह काजल आंखों को ठंडक प्रदान करता है और उनमें नमी को बनाए रखने में मदद करता है। इसके नियमित उपयोग से आंखों की रोशनी में भी सुधार हो सकता है और थकी हुई आंखों को आराम मिलता है।
इसके अलावा, लंबे समय तक स्क्रीन पर काम करने या धूल-मिट्टी के संपर्क में आने के कारण होने वाली जलन में भी छड़ीला का काजल राहत प्रदान करता है।
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4. मूत्र विकारों में सहायक:
छड़ीला का उपयोग मूत्र संबंधी विकारों के उपचार में अत्यंत लाभकारी माना गया है। यह मूत्र मार्ग की सफाई करके संक्रमण और जलन जैसी समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है। आयुर्वेद में छड़ीला को मूत्रल (Diuretic) गुणों से भरपूर माना गया है, जो मूत्र के प्रवाह को बढ़ाता है और मूत्र मार्ग में रुकावट को दूर करता है। इसके नियमित सेवन से पेशाब में जलन, बार-बार मूत्र आने या रुक-रुक कर मूत्र आने जैसी समस्याओं में राहत मिलती है।
उपयोग विधि:
- 10-30 मिलीलीटर पानी लें और उसमें 5-10 ग्राम छड़ीला डालकर उबालें।
- जब पानी आधा रह जाए, तो उसमें 1 ग्राम जीरा चूर्ण और 5 ग्राम मिश्री मिलाकर ठंडा करें।
- इस काढ़े का सेवन दिन में दो बार करें।
छड़ीला का यह काढ़ा मूत्र मार्ग के संक्रमण (UTI) को कम करने में मदद करता है और मूत्र के दौरान होने वाली जलन को शांत करता है। इसके अलावा, यह गुर्दे के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में भी सहायक होता है और मूत्र मार्ग में किसी भी प्रकार की सूजन या जलन को दूर करने में कारगर साबित होता है।
मूत्र संबंधी विकारों में नियमित रूप से इस काढ़े का सेवन करने से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
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5. विसर्प (एरिसिपेलस) रोग में फायदेमंद:
विसर्प रोग, जिसे अंग्रेजी में एरिसिपेलस (Erysipelas) कहा जाता है, एक प्रकार का त्वचा संक्रमण है जो मुख्य रूप से त्वचा की ऊपरी परत और नीचे की ऊतक को प्रभावित करता है। इसमें त्वचा पर लालिमा, सूजन, दर्द और जलन जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। छड़ीला का उपयोग इस रोग के उपचार में विशेष रूप से लाभकारी माना गया है।
छड़ीला में प्राकृतिक एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो त्वचा में संक्रमण फैलाने वाले जीवाणुओं को समाप्त करते हैं। इसके उपयोग से त्वचा की सूजन और जलन में कमी आती है और घाव जल्दी भरने लगते हैं।
उपयोग विधि:
- सज्जीक्षार, नीलाथोथा, कासीस, छड़ीला, रसाञ्जन और मैनसिल का चूर्ण तैयार करें।
- इस चूर्ण को प्रभावित स्थान पर लेप के रूप में लगाएं।
- दिन में दो बार इस उपचार का उपयोग करें।
यह लेप त्वचा की लालिमा और सूजन को कम करता है और संक्रमण को बढ़ने से रोकता है। विसर्प रोग में इस औषधीय लेप का नियमित उपयोग त्वचा को ठंडक प्रदान करता है और रोग के लक्षणों को जल्दी दूर करता है।
इसके अलावा, छड़ीला का यह लेप त्वचा की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर दोबारा संक्रमण होने की संभावना को भी कम करता है।
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6. घाव और चोट में लाभकारी:
छड़ीला का उपयोग घाव और चोट के उपचार में अत्यंत प्रभावी माना जाता है। इसके प्राकृतिक एंटीसेप्टिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण घाव को जल्दी भरने में मदद करते हैं और संक्रमण से बचाव करते हैं। छड़ीला में मौजूद औषधीय तत्व त्वचा के ऊतकों को पुनर्जीवित करते हैं और सूजन को कम करते हैं।
घाव या चोट लगने पर छड़ीला का उपयोग बाहरी लेप के रूप में किया जाता है। यह घाव के स्थान पर नमी बनाए रखता है और जलन को कम करता है। इसके साथ ही, यह त्वचा को ठंडक प्रदान कर दर्द को भी शांत करता है। छड़ीला के लेप से घाव जल्दी सूखता है और दाग-धब्बों का निशान भी कम हो जाता है।
उपयोग विधि:
- छड़ीला को पीसकर पाउडर बना लें।
- इसमें हल्दी और थोड़ी सी शहद मिलाकर पेस्ट तैयार करें।
- इस पेस्ट को घाव या चोट के स्थान पर हल्के से लगाएं।
- दिन में 2-3 बार इस लेप का उपयोग करें।
छड़ीला के इस उपचार से घाव में किसी भी प्रकार का संक्रमण होने की संभावना कम हो जाती है और ऊतकों का पुनर्निर्माण तेजी से होता है। साथ ही, घाव के स्थान पर दर्द और जलन से भी राहत मिलती है।
इस प्रकार, छड़ीला न केवल घाव को जल्दी भरने में सहायक है बल्कि त्वचा को स्वच्छ और स्वस्थ बनाए रखने में भी मदद करता है।
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7. त्वचा रोगों में उपयोगी:
छड़ीला का उपयोग विभिन्न त्वचा रोगों के उपचार में अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इसमें मौजूद एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण त्वचा को संक्रमण से बचाते हैं और उसकी सुरक्षा करते हैं। यह त्वचा के दाग-धब्बों, फुंसियों, खुजली, एक्जिमा और सोरायसिस जैसी समस्याओं में प्रभावी होता है। छड़ीला त्वचा को ठंडक प्रदान करता है और सूजन को कम करता है, जिससे त्वचा स्वस्थ और साफ रहती है।
छड़ीला के नियमित उपयोग से त्वचा में निखार आता है और किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचाव होता है। यह त्वचा की गहराई तक जाकर उसे पोषण प्रदान करता है और मृत कोशिकाओं को हटाकर नई कोशिकाओं का निर्माण करता है।
उपयोग विधि:
- छड़ीला पाउडर को गुलाब जल या एलोवेरा जेल में मिलाकर पेस्ट तैयार करें।
- इस पेस्ट को प्रभावित त्वचा पर लगाएं और 20-30 मिनट तक छोड़ दें।
- फिर गुनगुने पानी से धो लें।
- इस उपचार को सप्ताह में 2-3 बार दोहराएं।
छड़ीला का यह लेप त्वचा को कोमल और चमकदार बनाता है और किसी भी प्रकार की खुजली या जलन से राहत दिलाता है। नियमित उपयोग से त्वचा रोगों में धीरे-धीरे सुधार होता है और त्वचा स्वस्थ व दाग-धब्बों से मुक्त रहती है।
इसके अलावा, छड़ीला का उपयोग एलर्जी या कीट के काटने से हुई त्वचा की सूजन को भी कम करने में सहायक है।
आयुर्वेद में सदियों से उपयोग किए जा रहे इस चमत्कारी पौधे का सही और नियमित उपयोग आपके स्वास्थ्य को बेहतर बना सकता है। लेकिन किसी भी औषधि का उपयोग करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें, ताकि इसके लाभों का अधिकतम फायदा उठाया जा सके।
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