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What is Daru Haldi (Daruharidra)?

Daru Haldi, also known as Daruharidra, is an ancient herb that plays an important role in Ayurvedic medicine. It is a medicinal plant whose roots and fibers are rich in many therapeutic properties. The scientific name of Daru Haldi is “Berberis aristata” and it is found in Indian scrubs. Its leaves are green in color and its bark is brown in color. Daru Haldi is used in the treatment of various diseases, such as gastric problems, cough, fever, hemorrhoids, anemia, urinary diseases, and skin problems. Apart from this, Daru Haldi is also known to have natural antibiotic, antifungal, and antiviral properties that are helpful in treating various types of infections.

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Benefits of Daru Haldi (Daruharidra)

1. Benefits of Daru Haldi in fever

Daruhaldi has natural anti-inflammatory and anti-bacterial properties, which help in reducing infection in the body and controlling fever. It strengthens the body’s immune system and balances the temperature in the body. Apart from this, drinking decoction of Daruhaldi helps in detoxifying the body, thereby flushing out the toxins caused by infection. The traditional method of making decoction from its root bark is used to get relief from fever. To make decoction from the root bark of Daruhaldi, boil about 10-20 grams of bark in 200 ml of water, till the water remains half. Filter this decoction and let it cool and consume it twice a day.

2. Use Daru Haldi to dry wounds

Daru Haldi, natural antiseptic and antibacterial properties help in healing the wound faster. The root bark of Daru Haldi is used to dry wounds and protect them from infection. To make a paste of Daru Haldi for wound treatment, first grind its root bark to make a powder. Mix this powder in water or coconut oil to prepare a thick paste. Apply this paste directly on the wound. The natural properties present in Daru Haldi paste protect the wound from infection and reduce inflammation. It also makes the skin around the wound healthy and helps the wound to dry quickly.

3. Treat eye disease using Daru Haldi

Daru Haldi, also known as ‘Daruharidra’, is extremely effective in the treatment of various eye diseases. The anti-inflammatory and antiseptic properties present in it help reduce eye irritation, swelling, and infection. One of the main ways to use Daru Haldi for the treatment of eye diseases is ‘Anjana’. For this, prepare a mixture of Madhu (honey) and Rasout (juice made from Daru Haldi root). Applying this mixture to the eyes provides relief from redness, irritation and swelling of the eyes. The combination of Madhu and Rasout cleanses the eyes and removes infections.

4. Using Daru Haldi to Reduce Obesity

Obesity has become a serious problem nowadays which is caused by changes in lifestyle and eating habits. Daru Haldi (Daruharidra) can help reduce obesity and may be helpful in achieving a healthy weight.

Points to note while using Daru Haldi include:

*Use of Rasanjan: Rasanjan of Daru Haldi promotes local immobilization, thereby promoting the metabolism of fat and muscle tissue faster. It may help reduce obesity.

*Decoction of Daru Haldi: Prepare a decoction by boiling the root bark of Daru Haldi in water. Drinking it regularly helps in keeping the digestive system healthy and aids in weight loss.

5. Daru Haldi is beneficial in urinary tract disease

Urine tract disease is a problem in which the urinary system does not work effectively and urine gets accumulated in the body. In this, the person has problem in urinating and it can cause many other problems. Daru Haldi (Daruharidra) can be beneficial in the treatment of urinary tract disease. The medicinal properties present in Daru Haldi are blood purifier, primary disinfectant, and sedative properties which can be helpful in curing urinary tract disease. Consuming Daru Haldi can improve the symptoms of urinary tract disease. It helps in removing toxins from the body and reduces urine accumulation.

To use Daru Haldi, Daru Haldi powder or juice can be consumed with honey. It can provide benefits in urinary tract disease due to its blood purifier properties.

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दारू हल्दी ( दारुहरिद्रा ) क्या है |

दारू हल्दी, जिसे दारुहरिद्रा भी कहा जाता है, एक प्राचीन औषधि है जो आयुर्वेदिक चिकित्सा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह एक औषधीय पौधा है जिसकी जड़ें और रेशे कई चिकित्सीय गुणों से भरपूर होते हैं। दारू हल्दी का वैज्ञानिक नाम “Berberis aristata” है और यह भारतीय सबकों में पाया जाता है। इसकी पत्तियों का रंग हरा होता है और इसकी छाल का रंग भूरा होता है। दारू हल्दी का उपयोग विभिन्न रोगों के इलाज में किया जाता है, जैसे कि आमाशय संबंधी समस्याएँ, खांसी, बुखार, बवासीर, एनीमिया, मूत्र रोग, और त्वचा संबंधी समस्याएँ। इसके अलावा, दारू हल्दी को प्राकृतिक एंटीबायोटिक, एंटीफंगल, और एंटीवायरल गुणों से भी जाना जाता है जो विभिन्न प्रकार के संक्रमणों के इलाज में मददगार होते हैं।

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दारू हल्दी (दारुहरिद्रा) के फायदे

1. बुखार में दारू हल्दी के फायदे

दारुहल्दी में प्राकृतिक एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो शरीर में संक्रमण को कम करने और बुखार को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है और शरीर में तापमान को संतुलित करता है। इसके अलावा, दारुहल्दी का काढ़ा पीने से शरीर को डिटॉक्सिफाई करने में मदद मिलती है, जिससे संक्रमण के कारण होने वाले विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं।इसकी जड़ की छाल से काढ़ा बनाने का पारंपरिक तरीका बुखार से राहत पाने के लिए उपयोग किया जाता है। दारुहल्दी की जड़ की छाल से काढ़ा बनाने के लिए, लगभग 10-20 ग्राम छाल को 200 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब तक कि पानी आधा न रह जाए। इस काढ़ा को छानकर ठंडा होने दें और दिन में दो बार सेवन करें।

2. घाव सुखाने के लिए करें दारू हल्दी का इस्तेमाल

दारू हल्दी, प्राकृतिक एंटीसेप्टिक और एंटीबैक्टीरियल गुण घाव को तेजी से ठीक करने में मदद करते हैं। दारुहल्दी की जड़ की छाल का उपयोग घावों को सुखाने और संक्रमण से बचाने के लिए किया जाता है। घावों के उपचार के लिए दारुहल्दी का लेप बनाने के लिए, पहले इसकी जड़ की छाल को पीसकर पाउडर बना लें। इस पाउडर को पानी या नारियल तेल में मिलाकर एक गाढ़ा पेस्ट तैयार करें। इस पेस्ट को सीधे घाव पर लगाएं। दारुहल्दी के पेस्ट में मौजूद प्राकृतिक गुण घाव को संक्रमण से बचाते हैं और सूजन को कम करते हैं। यह घाव के आसपास की त्वचा को भी स्वस्थ बनाता है और घाव को जल्दी सूखने में मदद करता है।

3. दारू हल्दी के प्रयोग से आंखों के रोग का इलाज

दारू हल्दी, जिसे ‘दारुहरिद्रा‘ भी कहा जाता है, आंखों के विभिन्न रोगों के उपचार में अत्यंत प्रभावी है। इसमें मौजूद एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीसेप्टिक गुण आंखों की जलन, सूजन, और संक्रमण को कम करने में मदद करते हैं। आंखों के रोगों के उपचार के लिए दारुहल्दी का प्रयोग करने का एक प्रमुख तरीका है ‘अञ्जन’। इसके लिए मधु (शहद) और रसौत (दारुहल्दी की जड़ से बना रस) का मिश्रण तैयार करें। इस मिश्रण को आंखों में लगाने से आंखों की लालिमा, जलन और सूजन में राहत मिलती है। मधु और रसौत का संयोजन आंखों की सफाई करता है और संक्रमण को दूर करता है।

4. मोटापा कम करने के लिए दारू हल्दी का इस्तेमाल

मोटापा आजकल एक गंभीर समस्या बन गया है जो लाइफस्टाइल और खाने की आदतों के बदलाव के कारण होता है। दारू हल्दी (दारुहरिद्रा) मोटापा को कम करने में मदद कर सकती है और स्वस्थ वजन प्राप्त करने में सहायक हो सकती है।

दारू हल्दी का उपयोग करते समय ध्यान देने योग्य बातें शामिल हैं:

*रसांजन का उपयोग: दारू हल्दी का रसांजन स्थानीय इम्बोलिजेशन (local immobilization) को बढ़ावा देता है, जिससे वसा और मस्सों के ऊतकों के मेटाबोलिज्म को तेजी से बढ़ावा मिलता है। यह मोटापा को कम करने में मदद कर सकता है।
*दारू हल्दी का काढ़ा: दारू हल्दी की जड़ की छाल को पानी में उबालकर एक काढ़ा तैयार करें। इसे नियमित रूप से पीने से पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है और वजन कम करने में सहायक होती है।

5 . मूत्र रोग में लाभ पहुंचाता है दारू हल्दी

मूत्र रोग एक ऐसी समस्या है जिसमें मूत्र तंत्र कारगर रूप से काम नहीं करता है और शरीर में मूत्र संचय हो जाता है। इसमें व्यक्ति को पेशाब करने में समस्या होती है और यह अन्य कई समस्याओं का कारण बन सकता है। दारू हल्दी (दारुहरिद्रा) मूत्र रोग के इलाज में लाभदायक हो सकती है। दारू हल्दी में मौजूद औषधीय गुण रक्तशोधक, प्राथमिक निर्जनक, और शांति देने वाले गुण होते हैं जो मूत्र रोग को ठीक करने में सहायक हो सकते हैं। दारू हल्दी का सेवन करने से मूत्र रोग के लक्षणों में सुधार आ सकता है। यह शरीर के विषैले पदार्थों को निकालने में मदद करता है और मूत्र संचय को कम करता है।

दारू हल्दी का उपयोग करने के लिए, दारुहल्दी का चूर्ण या रस को मधु के साथ सेवन किया जा सकता है। यह रक्तशोधक गुणों के कारण मूत्र रोग में लाभ प्रदान कर सकता है।

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